भारत में क्रिकेट किसी धर्म से कम नहीं है, लेकिन नक्सल प्रभावित इलाके से निकलकर दुबई की चमकदार लीग तक पहुंचना किसी फिल्मी कहानी जैसा लगता है। लेकिन ये सपना सच किया है बिहार के गया जिले के शोएब खान ने, जिन्हें IPL की दिल्ली कैपिटल्स की असोसिएट टीम दुबई कैपिटल्स की डेवलपमेंट टीम में जगह मिली है।
कोठी गांव
शोएब का गांव कोठी, इमामगंज क्षेत्र में आता है — जहां ना ठीक से स्कूल हैं, ना खेल के मैदान। लेकिन उनके पिता अदीब खान उर्फ जुगनू खान, जो किसान और समाजसेवी हैं, ने बच्चों की पढ़ाई और सपनों में कभी कमी नहीं आने दी।
पढ़ाई और पैशन
शोएब को गया शहर के ज्ञान भारती स्कूल में पढ़ने भेजा गया, जहां उनका क्रिकेट के लिए प्यार और गहरा हो गया। शुरू में उनके माता-पिता थोड़े हिचकिचा रहे थे, लेकिन बेटे के जज़्बे ने उनका मन बदल दिया।
परिवार का साथ
शोएब के बड़े भाई अल्तमश खान, जो United Nations में काम करते हैं, बताते हैं कि शोएब ने जिला और राज्य स्तर पर क्रिकेट खेला। फिर दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी में भी यूनिवर्सिटी टीम में चुने गए और कई नामी खिलाड़ियों के साथ चैरिटी मैच खेले।
झटका और मौका
बिहार की रणजी टीम में जगह न मिलने से शोएब बहुत निराश हुए और क्रिकेट छोड़ने की सोचने लगे। लेकिन तभी उन्हें दुबई में एक ट्रायल की खबर मिली — और फिर उनके पिता ने पूरा सपोर्ट किया।
दुबई की उड़ान
दुबई और शारजाह के क्लबों में खेलने के बाद, शोएब ने खुद को साबित किया। ILT20 डेवलपमेंट लीग में उन्हें खेलने का मौका मिला और वहां के क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें फील्डिंग के लिए सम्मानित भी किया।
प्रमुख उपलब्धियाँ
ILT20 डेवलपमेंट लीग में अपने पहले ही मैच में शोएब ने 35 रन बनाए, तीन छक्के और एक चौका मारा। उन्हें ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ और ‘बेस्ट फील्डर ऑफ टूर्नामेंट’ जैसे खिताब मिले। अब उन पर ILT20 2026 के लिए नजर है।
गांव से रिश्ता
शोएब ने सिर्फ खुद नहीं खेला, बल्कि गांव के बच्चों को भी मौका देने की सोची। 12 साल की उम्र में ‘कोठी क्लब’ बनाया और वहां खुद क्रिकेट का मैदान तैयार करवाया, बच्चों को ट्रेनिंग दी।
पिता की मेहनत
शोएब के पिता याद करते हैं कि कैसे वो हर छुट्टी में बेटे को 100 किलोमीटर दूर प्रैक्टिस के लिए ले जाते थे। बाद में खेत में ही एक पिच बनवा दी ताकि रोज़ अभ्यास हो सके।
बातों की प्रेरणा
“भारत में क्रिकेट का जुनून बहुत है, लेकिन गांव से नेशनल लेवल तक पहुंचना बहुत मुश्किल है,” जुगनू खान कहते हैं। लेकिन उन्होंने बेटे के सपनों को पंख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सपने से सच
शोएब की ये कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि एक गांव की, एक परिवार की और एक विश्वास की कहानी है — जिसने दिखा दिया कि मेहनत और हिम्मत से कोई भी सपना साकार हो सकता है।